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Monday 3 August 2015

कैलाश मानसरोवर यात्रा =आठवाँ दिन- गाला से बुधी (बिन्दाकोटी, लखनपुर, मालपा, लामरी) =19 KM Trek

 
बुद्धि की ऊँचाई 2740 मीटर

आज की यात्रा लगभग 18-19 कि.मी के लगभग थी, जो बहुत ही कठिन थी। आज की इस यात्रा में क्या क्या सावधानी रखनी हैं इस के  बारे में हमें बार बार बताया गया था। साथ में ये भी बताया गया था अगर आप चलते चलते काली नदी में गिर जाते हो तो आप की बॉडी को सर्च नहीं किया जायेगा तीन दिन बाद डेथ सर्टिफिकेट जारी कर दिया जायेगा जिस का कारण है काली नदी का तीव्र बेग। चलो शुरू करते हैं आज की यात्रा। 

अब सुबह 4 बजे नींद खुलने का नियम सा बन गया था। नित्यक्रिया से निवृत हो स्नान ध्यान किया। फिर जा कर  चाय पी। ठीक 5 बजे यात्रा पर रवाना हुए। चलने से पहले ही मेरा पोर्टर राजिंदर आ गया उस ने मेरा बैग उठा लिया और हम साथ साथ चलने लगे।
 
अत्यन्त कठिन संकरा एवं पथरीला रास्ता था। सब से बड़ी मुश्किल थी, रास्ते में ध्यान से चलें या आस पास की प्रकृतिक सुंदरता को देखें? दाहिने तरफ 300-400 फीट नीचे काली नदी अत्यन्त वेग से बह रही थी।  उस पर विपरीत दिशा से आते हुए घोड़े और खच्चर। जो यात्री पैदल नहीं जा रहे थे वो अपने अपने घोड़े पर बैठ कर आगे जा रहे थे। थोड़ी देर चलने के बाद  छोटा सा मंदिर आया और हम माथा टेक कर आगे बढ़ गए।

बिन्द्कोटी से शुरू हुई  4444  सीढ़ियाँ की उतराई का सफर, ये सीढ़ियाँ क्या मानों पत्थरों को फेंक-फेंककर बनायी हुई सीढ़ियाँ हों। देखने में तो उबड़-खाबड़ टेढ़े-मेढ़े, छोटे-बड़े पत्थर बेतरतीब पड़े थे। पत्थर पर पैर रखते हुए कभी-कभी संतुलन नहीं बनता था। इन सीढ़ियों पर कोई भी यात्री घोड़े पर नहीं चढ़ा था। कई यात्री अपने पोर्टर का हाथ पकड़ कर नीचे उतर रहे थे।  मैं यहाँ वीडियो बनाते हुए नीचे उतर रहा था अचानक मेरा पैर फिसल गया, लेकिन मैं गिरने से बच गया। तभी मन ही मन सोचा 'सुशील क्या कर रहा है ?यात्रा के जिस दिन के बारे में  सावधानी बरतने के लिए  बार बार बताया गया वही गलती क्यों कर रहा है। .इस के बाद पूरी सावधानी से चला गया। सीढ़ियाँ उतरते-उतरते घुटने जवाब देने लगे थे।  बस छोटे से  रास्ते पर आंखें गढ़ाए चलते जा रहे थे अपनी बेंत के सहारे।
 
लगभग 8 बजे के करीब हम लोग लखनपुर पहुंचे, वहां चाय नाश्ते  की व्यवस्था की गई थी। यात्री अपनी चाल के अनुसार आ रहे थे और चाय पीकर, नाश्ता  कर पुनः आगे बढ़ रहे थे। आगे पहाड़ों पर सारे रास्ते में छोटे छोटे से बहुत सुन्दर संदेश  लिखे हुए थे। आगे बढ़ने पर आया एक लकड़ी का पुल जिसके नीचे तीव्र  गति के समान  गिरता झरना जिसके छींटें पुल के ऊपर भी आ रहे थे दूसरी ओर से आती काली नदी का पानी पुल के नीचे मिल रहा था।

लगभग 10.30 बजे हम लोग माल्पा (2018 मीटर) पहुचे, जिसके बारे में बताया गया कि 1998 के पूर्व तक यात्री यही पर रात्रि विश्राम करते थे किंतु 1998 में रात्रि के वक्त पहाड़ धसने से यात्रियों सहित 200-300 लोगो की मृत्यु हो गई थी, तब से यहां से कैम्प हटा दिया गया है। रास्ते मे ही 1998 के दुर्घटना में मृत लोगों के (यात्री, जवान अन्य) याद में ‘‘स्मृति स्‍तंभ‘‘ बनाया गया है। जिसमे म.प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह के द्वारा निर्माण कार्य में सहयोग करना भी उल्लेखित है।
 
मालपा में ही कुमाऊ मण्डल विकास निगम के द्वारा यात्रियों के दोपहर भोजन की व्यवस्था की गई। छोटी सी चारदीवारी से घिरे आंगन में चारों ओर बैठने के लिए सीमेंट की मुंडेर सी बनी थीं जिन पर दरी बिछी हुई  थी। बीच में छोटी सी मेज पर परात में सब्जियाँ थी। क्रमशः यात्रीगण आते जा रहे थे और भोजन ग्रहण कर रहे थे।  5 कि.मी आगे लामरी गाँव था। 

आगे का रास्ता पीछे के रास्ते के मुकाबले अपेक्षाकृत आसान था। लगभग 1 बजे मैं लामरी पहुंचा। यहां पर इण्डो-तिब्बत बार्डर पुलिस के कैम्प में यात्रियों के लिए बिस्किट, आलू, चिप्स व चाय की व्यवस्था की गई थी । जवानों के द्वारा ‘‘ओम नमः शिवाय‘‘ बोलकर यात्रियों का स्वागत करते हुए उन्हें बिठाया जा रहा था एवं चाय प्रस्तुत की जा रही थी। मैंने चाय और चिप्स लिए और  चलने से पहले उनका आभार प्रकट किया।

लामरी से आगे के रास्ते में बहुत ही खूबसूरत झरने  देखने को मिले थोड़ा आगे बढ़ने पर बायीं ओर पहाड़ों के ऊपर एक बहुत ही सुन्दर झरना गिरते हुए आकर्षित कर रहा था। तो दूसरी  तरफ काली नदी घाटी में तेजी से  बह रही थी। कुछ समय हमने यहाँ फोटो लिए और आगे चल दिए। रास्ता पथरीला सकरा एवं घाटी होने से बहुत रिस्की भी था। आगे रास्ते मे तेज बहाव वाला झरना मिला जिसमें बीच-बीच मे बेढ़ंगे पत्थर थे तथा नीचे गहरी खाई में काली नदी बह रही थी।

लामरी  से बुधी कैंप की दूरी 4 कि.मी है। लामरी से २ कि.मी आगे जाने पर थकावट हावी होने लगी। आखिरी के 2 कि.मी बड़ी मुश्किल से पार हुए।  हम पुल पार कर एक दम खड़ी चढ़ाई पार कर बुधी पहुंचे। बुधी छोटा सा पहाड़ी गांव है। गांव के पास ही कुमाऊ मंडल विकास निगम का कैम्प है।  कैंप के बाहर फूलो की लम्बी कतार देख कर दिल में अजीब सा सुकून मिला। बुधी कैंप थोड़ा नीचे को बना है। प्रवेश में ही कुछ सीढ़ियाँ उतरनी पड़ती हैं। थकान पूरी तरह से हावी थी।
 
कैंप में स्वागत ’ऊं नमः शिवाय’के उद्घोष और  शरबत के साथ हुआ। हम लोग 3 बजे तक कैंप पहुंच गये थे। कैंप में पहुँचते ही मैं बिस्तर पर गिर पड़ा।  आज मैंने 18 -19 कि.मी की दूरी 10 घंटे तय की थी। थोड़ी देर आराम करने के बाद चाय आ गये। कुछ यात्री अभी पीछे रह गए थे। काफी देर बाद वे  यात्री पहुंचे नहीं।  एल.ओ साहिब चिंतित थे उनके बारे में।  थोड़ी देर में सभी यात्री सकुशल कैंप में आ गए।  सभी यात्रियों के आने के बाद एल.ओ साहिब को मिनिस्ट्री ऑफ़ एक्सटर्नल अफेयर को सूचित करना होता है और पहुँचने के टाइम के बारे में बताना होता है।  बाद में इस सुचना के आधार पर K.M.V.N वाले उसे अपनी साइट पर अपडेट करते हैं।  
 
शाम को मौसम बहुत ही अच्छा था। कैंप में लगे फूलों की फोटो ली गई।  कैंप में ही सॅटॅलाइट फ़ोन PCO था, तो वह फ़ोन करने चला गया। कैंप में मैंने अपना ब्लड प्रेशर डॉक्टर से चेक करवाया और मुझे आज ही पता चला K.M.V.N की तरफ से एक डॉक्टर साहिब हमारे साथ साथ धारचूला से चल रहे हैं।  वही पर एक गाँव वाले से मेरी मुलाकात हुई जिस ने एक कीड़ा दिखाया जिसे कीड़ा जड़ी कहते हैं।  मेरे पोर्टर ने भी रास्ते में इस कीड़ा जड़ी के बारे में बताया था।  कीड़ा जड़ी के बारे में आप भी सुन कर हैरान रह जायेगें। 

कीड़ा जड़ी के बारे में 

कीड़ा... जड़ी हिमालयी क्षेत्रों में बर्फ पिघलने के बाद उत्तराखंड और हिमाचल के कबायली इलाकों में मिलने वाली एक दुर्लभ बूटी है। कीड़ा जड़ी कहे जाने वाली यह बूटी साधारण नहीं है। इस बूटी की चीन जैसे देशों में खासी डिमांड है, क्योंकि इस बूटी से सेक्स पावर बढ़ाने वाली वियाग्रा तैयार की जाती है। अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में सूखी हुए इस बूटी की कीमत करीब 60 लाख रुपए प्रतिकिलो है। जबकि दिल्ली में इस बूटी की कीमत करीब 10 लाख रुपए प्रतिकिलो  है। कीड़ा जड़ी एक तरह की फफूंद है जो हिमालय के दुर्गम क्षेत्रों में पाई जाती है। यह एक कीड़े पर हमला करती है, और उसे चारों तरफ से अपने आप में लपेट लेती है। उत्तर भारत में इसे जहां कीड़ा जड़ी कहा जाता है, वहीं तिब्बत में इसे यारसागुम्बा के नाम से जानी जाती है। चीन में कीड़ा जड़ी को वासनोत्तेजक मेडिसिन के तौर पर प्रयोग किया जाता है। हालांकि इसका कारोबार कानूनन जुर्म है। नेपाल में इस बूटी का कारोबार कभी वैध था और लम्बे समय तक यहां से यह बूटी वैध रूप से बेची जाती थी। बाद में इस पर नेपाल सरकार ने भी प्रतिबंध लगा दिया था। कई लोग इसे पाने के लिए अवैध रूप से ग्लेशियर को पिघला रहे हैं। 

रात्रि को गर्म सूप पिया गया और बाद में रात का खाना के टाइम पर आगे के यात्रा के बारे में एल .ओ. ने ब्रीफिंग की। खाना खा कर सभी यात्री निद्रा की गोद में चले गए। 
 
 
 
सुबह चलते हुए 

रास्ते में छोटा सा मंदिर 


मेरा  पोर्टर राजिंदर (नकली नाम )

4444 सीढ़ियां उतरते हुए 

सीडियां उतरते हुए 




यात्रा का आनंद मानते हुए 



काली नदी के दूसरी तरफ नेपाल साइड में झरना 

लखनपुर

लखनपुर में यात्री नाश्ता करते हुए 

सारे रास्ते ऐसे सन्देश ही लिखे हुए हैं। 

काली नदी 




रौद्र रूप काली नदी का 


मालपा गाँव से पहले लकड़ी का पूल 

मालपा गाँव 


मालपा में दोपहर के खाने का इंतजाम 


झरना 

लामरी में जवान  चाय के साथ यात्रियों  स्वागत करते हुए 

मनमोहक झरना 


बुधि कैंप 


कीड़ा ---जड़ी

 
 
 

 

4 comments:

  1. सम्भल कर चलना ही उत्तम है।

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  2. बहुत सुन्दर वृतांत ! कीड़ा जड़ी के विषय में पहली बार जाना ! एक सवाल है मन में ! अगर इन दूर दराज के लोगों को कोई इमरजेंसी आ जाए , कोई बीमार पड़ जाए तब क्या करते हैं ये लोग ?

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  3. योगी जी प्रशासन ने उन्हें हेलीकाप्टर की सुविधा दी गई है। बहुत ही कम पैसों में।

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  4. OM NAMAH SHIVAY

    The Malpa landslide was one of the worst landslides in India. On 18 August 1998 at 3.00 a.m., massive landslides wiped away the entire village of Malpa in the Pithoragarh district of Uttarakhand, then in Uttar Pradesh in Kali Valley of Higher Kumaon division of the Himalayas. The rockfall started on 16 August bringing down huge rocks which initially killed three mules. A total of 221 people died, including 60 Hindu pilgrims traveling to Tibet as part of "Kailash Manas Sarovar Yatra". One noted death was that of the Indian dancer Protima Bedi. The rockfall continued till 21 August. As the area lies in a seismic zone, the earthquakes of 1979 and 1980 may have been the underlying cause, as was attributed by a report of the Wadia Institute of Himalayan Geology.
    The above citation is from wikipedia.
    I came to know regarding Kailash Mansarovar Yatra and this route during my MD course in SGPGI, Lucknow. In Year 1999 or 2000 (the exact year) I am not able to recollect, one of my seniors from SGPGI went along with the Kailash Mansarovar Yatris till the Indian Border as doctor and provided the Telemedicine support.
    Telemedicine which is now considered as an important tool of technology to reach the remote places for helping the needy with most advanced medical consultations, was in fact in nascent stage during 1998- 2001. Later on as the progress in technology of communication evolved we are using this technology, (even some times unaware).

    Protima Bedi was an ODISHI Classical Dancer.

    Very renowned for her dancing skills. She has left Nrityagram, situated on the outskirts of Bangalore. Nrityagram became India's first free dance gurukul, village for various Indian classical dances, consisting of seven gurukuls for the seven classical dance styles and two martial arts forms, Chhau and Kalaripayattu. She wanted to revive the guru-shishya parampara in the right kind of environment.

    More searches can be done in wikipedia,




    I could remember the photo slides of dead bodies which were still lying till 1999 or 2000.

    Thank you Sushil ji for such a descriptive writting.
    Going through your wirttings it feel;s as if myself is doing the yatra.
    thank you and God bless you and all.
    Jai Bhole Baba.

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