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Thursday 29 October 2015

कैलाश मानसरोवर यात्रा -----पच्चीसवाँ दिन (अंतिम दिन) ------जागेश्वर से दिल्ली


 जागेश्वर से दिल्ली
 
हम लोगों ने सुबह 5 बजे ही जागेश्वर से प्रस्थान किया और लगभग 2.50 घंटे के बाद हम अल्मोड़ा गेस्ट हाउस पहुँच गए। यहाँ पर हल्की हल्की बूंदाबांदी हो रही थी। सभी यात्रीगणों ने यहाँ नाश्ता किया। उत्कल जी हमें बताया यहाँ पास में ही एक रामकृष्णा कुटीर है जहाँ स्वामी विवेकानंद और सिस्टर अवेदिता के बारे में काफी सामग्री है। उत्कल जी, एल.ओ. साहिब, मैं और कोचर जी वहाँ पहुँच गए। बाहर अभी भी बारिश हो रही थी। उस कुटीर के मालिक ने हमें स्वामी विवेकानंद के सम्बन्ध में काफी चीजें दिखाई। 

वहाँ से निकल कर हम अपनी बस में कर बैठ गए। एल. साहिब सब को जल्दी करने के लिए बोल रहे थे। तभी हमारी बस को एल. साहिब ने आगे चलने के लिए बोला। पर हमारी बस में शीलेश भाई आये नहीं थे। वो पीछे भागते हुए आये। सभी यात्रियों ने बस को रुकवाया। जैसे ही वो बस में चढ़े उन्होंने एल. साहिब को ऊँचा ऊँचा बोलना शुरू कर दिया। बस का माहौल थोड़ी देर के लिए ख़राब सा हो गया था। शायद इस का कारण वही पुराने संसार का वातावरण हैं।  जिस में हम एक महीना पहले थे।  इस वातावरण में वही प्रदुषण, मानसिक तनाव, मक्कारी, शोर-शराबा था। प्रकृति का दिव्य रूप, पवित्र वातावरण का असर कम होना शुरू हो गया था, जिसे हम पीछे छोड़ आये थे। 
 
दोपहर 12.30 के करीब हम काठगोदाम पहुँच गए। वहाँ हम ने गेस्ट हाउस में भोजन किया। वहाँ K.M.V.N की तरफ से अभिनन्दन समारोह में यात्रा पूर्ण होने पर उपहार स्वरुप कुमायूँनी आर्ट की प्रतिलिपि और K.M.V.N ने सर्टिफिकेट दिया।
 
आगे की यात्रा के लिए काठगोदाम में कुमाऊ मंडल विकास निगम द्वारा एयर कंडीशन्ड बस थी। बस आगे दिल्ली से 80 -90 कि.मी. पहले एक होटल के पास रुकी। जहाँ पूर्व कैलाशी गुलशन  भाई अपने साथियो सहित हमारे स्वागत और चाय की व्यवस्था की हुई थी। हम कृतज्ञ है गुलशन भाई के अथितय और सेवा भाव के। श्री गुलशन भाई को शत शत नमन। वही बस में मैंने सब यात्रियों ( एक-एक यात्री का ) का यात्रा के सम्बन्ध में उनके अनुभवों के बारे में वीडियो रिकॉर्डिंग की। 
 
आठ बजे के करीब हम दिल्ली गुजराती समाज सदन पहुँचे।  हम जैसे ही उतरे दिल्ली वासियो के परिवारजनों ने हमें गले से लगा लिया। हम अंदर गए और श्री उदय कौशिक जी के कमरो में जा कर शिवलिंग को नमन किया। जिन्होंने कृपा करके अपने धाम बुलाया और सकुशल यात्रा संपूर्ण कराकर मेरा सपना सार्थक कराया और प्रसाद ग्रहण किया श्री उदय जी ने सभी के लिए खाना बनवा रखा था। हम सभी ने थोड़ा सा भोजन किया। भोजन के बाद सभी यात्रियों ने एक दूसरे से विदाई ली और अपने अपने कार्यक्रम के अनुसार घरों के लिए प्रस्थान करने लगे।  मुझे लेने के लिए मेरी सिस्टर और जीजा जी गए थे। हम ने सभी कैलाशी भाइयो और बहनो से पुन: मिलने के वादे के साथ विदा मांगी।
 
इस पावन यात्रा को करने के बाद पहला जैसा कुछ नहीं था। ऐसा लगता है जैसे अंदर से बहुत कुछ बदल सा गया है। सांसारिक मोह माया से पूरी तरह से तो नहीं निकल सका, लेकिन बहुत सी संसारिक  इच्छाएँ अपने आप खत्म हो गई हैं। सब जगह शिव तत्व ही नजर आता है। ऐसी है ये पावन यात्रा।
।।ॐ नमः शिवाय।। 
 

स्वामी विवेकानंद जी का फोटो 

सिस्टर अवेदिता 






काठगोदाम में सब यात्रियों को सर्टिफिकेट मिला 

गुलशन भाई की गाडी 

हमारी बस 

गुलशन भाई द्वारा कैलाश यात्रियों के लिए चाय पानी का प्रबंध 

हमारे ग्रुप की लेडीज 


नीलम जी , मैं और अंजू जी 

गुजरात समाज सदन में हमारा स्वागत



इस यात्रा के खर्चे का ब्यौरा
 
 
1. 
Rs.32,000
केएमवीएन शुल्क:
  • इसमें से 5,000 / की एक गैर वापस योग - 'कुमाऊं मंडल विकास निगम लिमिटेड' के पक्ष में दिल्ली में देय बैंक डिमांड ड्राफ्ट द्वारा यात्रा में भागीदारी की पुष्टि करने के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है।
  • Rs.27,000 की बैलेंस / - यात्रा शुरू करने के लिए दिल्ली में आगमन पर देय है।
2. 
Rs.2,400
चीनी वीजा शुल्क।
3. 
Rs.3,100
नकद या चिकित्सा परीक्षण के लिए 'दिल्ली हार्ट एंड लंग इंस्टीट्यूट' के लिए बैंक डिमांड ड्राफ्ट द्वारा देय।
4. 
2,500
तनाव इको टेस्ट के लिए देय, यदि चिकित्सा प्राधिकारी द्वारा की आवश्यकता है।
5. 
अमेरिका $ 801
(लगभग Rs.49,662 @रु 62  के बराबर)
तिब्बत में चीनी अधिकारियों को देय; Taklakot पर भोजन; सामान के परिवहन और लिपुलेख दर्रे पर घोड़ा / पोनी  की भर्ती के  लिए शुल्क सहित परिवहन,; कैलाश मानसरोवर और केजिया मंदिर के लिए प्रवेश टिकट।
6. 
Rs.8,904
भारत में पोर्टर का शुल्क आने जाने का 
7. 
Rs.10,666
भारतीय में पोनी और उस के हैंडलर का आने जाने का शुल्क। यात्रियों धारचूला में ही पोनी  के बारे में फैसला करने की जरूरत है।
8. 
आरएमबी 360
(Rs.3,600 लगभग।)
तिब्बत में पोर्टर शुल्क (तिब्बती अधिकारियों द्वारा संशोधन के अधीन)।
9. 
आरएमबी 1,050
(Rs.10,500 लगभग)
तिब्बत में  (तिब्बती अधिकारियों द्वारा संशोधन के अधीन) पोनी और हैंडलर का शुल्क। तिब्बत में कैलाश परिक्रमा के लिए पोनी और पोर्टर की भर्ती का Taklakot में  ही निर्णय करना होता है। 
10. 
Rs. 2,000
अंशदान समूह की गतिविधियों के लिए पैसे पूल करने के लिए।
11. 
Rs. 20,000
 
 लगभग इतने रुपए अपने पास भी होने चाहिए 

 

Saturday 24 October 2015

कैलाश मानसरोवर यात्रा ----चौबीसवाँ दिन-----पिथौरागढ़ से जागेश्वर

पिथौरागढ़ से जागेश्वर
 
आज हम 7.30 बजे  शिव स्तुति के बाद जागेश्वर के लिए रवाना हुए। बस गोल-गोल रास्तों पर घूम रही थी। लगभग 2 घंटे के बाद भूस्खलन की वजह से रास्ता बंद मिला। सब यात्रियों ने मिल कर पत्थर को हटाया। थोड़ा सा आगे जाने पर पुन: भारी भूस्खलन मिला। उत्तराखंड सरकार के बुलडोजर और जेसीबी मशीन मलबे को हटाने में लगी हुई थी। परन्तु जितने मलबे को वो हटाते उतना ही नया मलबा पहाड़ से नीचे आ जाता। हम सब ने वही पास की दुकान से चाय - पकोड़े खाए। यहाँ करीब 5 घंटे रुकने के बाद हम आगे बढ़े। 

एक बात का जिक्र जरूर यहाँ करना चाहूंगा। इस तीर्थ यात्रा में तीन तरह के यात्री थे। एक जो इस यात्रा को रोमांच, ट्रैकिंग और पर्यटन के रूप में ले रहे थे। दूसरा वे यात्री थे जो पूर्ण रूप से धार्मिक और अध्यातिमिक थे। तीसरा वे यात्री थे जो पर्यटन के आनंद के साथ धार्मिक स्थान की यात्रा का पुण्य भी लेना चाहते थे।

जाम में एक बात और हो गई। पहली तरह के कुछ यात्री जागेश्वर की जगह काठगोदाम जाना चाहते थे। जिस से वो अगले दिन दिल्ली  जल्दी पहुँच सके। लेकिन कुछ यात्री जागेश्वर ही जाना चाहते थे। हमारे एल.ओ साहिब ने भी काठगोदाम जाने के लिए बोल दिया। यात्रियों ने जब एल.ओ. साहिब को कहा कि हमें पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार जागेश्वर ही जाना चाहिए, पर एल.ओ. साहिब नहीं माने। जागेश्वर का रास्ता मात्र 2 घंटे का था और काठगोदाम पहुँचने में 5 - 6 घंटे का समय लगना था। फिर जो यात्री जागेश्वर जाना चाहते थे, उन्होंने एल.ओ से कहा कि हम रात को पहाड़ी सफर नहीं करेंगे यदि वह फिर भी नही मानेगें तो वो वही उतर कर टैक्सी ले कर जागेश्वर जा कर फिर दिल्ली जायेगें। एल.ओ. साहिब ने इस के बाद जागेश्वर के लिए हाँ कर दी।

शाम 5.30  बजे हमारी बस जागेश्वर पहुंची। उस समय बारिश हो रही थी। हम अपना बैग उठाकर नीचे उतरे तो घुटने बिलकुल जाम हो गए थे। थकान से शरीर निढ़ाल हो रहा था। गेस्ट-हाऊस के रिसेप्शन पर ही K.M.V.N  की ओर से ऊनी वस्त्रों की बिक्री हो रही थी। रूम में पहुंच कर सामान रख कर  हम जागेश्वर मंदिर जाने के लिए तैयार हो गए। बाहर बहुत ही तेज बारिश हो रही थी।  हम ने छाता उठाया और आरती से पहले ही मंदिर पहुँच गए। मंदिर में छोटे बड़े  बहुत से देवालय बने हुए हैं।। सभी के अलग-अलग पुजारी हैं। मुख्य मंदिर पर दारुकवन ज्योतिर्लिंग लिखा था। मैं और वर्मा जी ने  मंदिर में बैठ कर भोले बाबा का ध्यान किया। वही पर वर्मा जी ने भजनों द्वारा बहुत ही सुन्दर समां बांधा। बाद में हम सभी ने आरती का पूर्ण रूप से आनंद लिया।  बाहर अभी भी पूरी तरह से बारिश हो रही थी। जिस कारण हम सभी मंदिरों के दर्शन नहीं कर सके। सही कहूँ मन तृप्त नहीं हुआ था, यहाँ आ कर एक तो हम लेट पहुंचे थे यहाँ पर, दूसरा बारिश और अंधेरे की वजह से जागेश्वर धाम के दर्शन अच्छी तरह से नहीं कर सके। फिर कभी यहाँ आ कर अच्छे से दर्शन करेंगें इस जगह के ये सोच कर मन को समझाया।  

मंदिर से वापिस गेस्ट-हाऊस आये। रात्रि का भोजन कर सोने चले गए।

जागेश्वर धाम के बारे में

 

उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 37 किलोमीटर दूर स्थित केंद्र जागेश्वर धाम के प्राचीन मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस क्षेत्र को सदियों से आध्यात्मिक जीवंतता प्रदान कर रहे हैं। यह समुद्र तल से 1870 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।  जागेश्वर मंदिर विशेष रूप से सुंदर देवदार के पेड़ों के बीच भगवान शिव को समर्पित है। जागेश्वर को पुराणों में हाटकेश्वरऔर भू-राजस्व लेखा में पट्टी पारूणके नाम से जाना जाता है। पतित पावन जटागंगाके तट पर समुद्रतल से लगभग पांच हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित पवित्र जागेश्वर की नैसर्गिक सुंदरता अतुलनीय है। कुदरत ने इस स्थल पर अपने अनमोल खजाने से खूबसूरती जी भर कर लुटाई है। लोक विश्वास और लिंग पुराण के अनुसार जागेश्वर संसार के पालनहार भगवान विष्णु द्वारा स्थापित बारह ज्योतिर्लिगों में से एक है।
 
उत्तर भारत में गुप्त साम्राज्य के दौरान हिमालय की पहाडियों के कुमाऊं क्षेत्र में कत्यूरीराजा थे। जागेश्वर मंदिरों का निर्माण भी उसी काल में हुआ। इसी कारण मंदिरों में गुप्त साम्राज्य की झलक भी दिखलाई पडती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इन मंदिरों के निर्माण की अवधि को तीन कालों में बांटा गया है। कत्यरीकाल, उत्तर कत्यूरीकाल एवं चंद्र काल। बर्फानी आंचल पर बसे हुए कुमाऊं के इन साहसी राजाओं ने अपनी अनूठी कृतियों से देवदार के घने जंगल के मध्य बसे जागेश्वर में ही नहीं वरन् पूरे अल्मोडा जिले में चार सौ से अधिक मंदिरों का निर्माण किया जिसमें से जागेश्वर में ही लगभग 250  छोटे-बडे मंदिर हैं। मंदिरों का निर्माण लकडी तथा सीमेंट की जगह पत्थर की बडी-बडी शिलाओं से किया गया है। दरवाजों की चौखटें देवी देवताओं की प्रतिमाओं से अलंकृत हैं। मंदिरों के निर्माण में तांबे की चादरों और देवदार की लकडी का भी प्रयोग किया गया है। पुराणों के अनुसार शिवजी तथा सप्तऋषियोंने यहां तपस्या की थी। कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं जिसका भारी दुरुपयोग हो रहा था। आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य जागेश्वर आए और उन्होंने महामृत्युंजयमें स्थापित शिवलिंगको कीलित करके इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की। शंकराचार्य जी द्वारा कीलित किए जाने के बाद से अब यहां दूसरों के लिए बुरी कामना करने वालों की मनोकामनाएंपूरी नहीं होती केवल यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएंही पूरी हो सकती हैं।
सुबह सुबह पिथौरागढ़ से निकलते हुए 
 
चलती बस से खींचा गया फोटो 
चलती बस से खींचा गया फोटो 
यात्रीगण पत्थर हटाते हुए 
फिर से भूस्खलन 
जागेश्वर मंदिर 
 


Saturday 17 October 2015

कैलाश मानसरोवर यात्रा ----तेइसवाँ दिन-----धारचूला से पिथौरागढ़



सुबह 5 बजे मेरी नींद खुल गई प्रायः सभी यात्री जाग गए थे एवं आगे की यात्रा की तैयारी कर रहे थे। फिर नहाने की तैयारी किया। थोड़ी देर में स्नान भी कर लिया। सुबह-सुबह हल्की ठण्ड लग रही थी। किन्तु नहाने के बाद अच्छा भी लग रहा था। यात्रियों के लिए गेस्ट हाऊस कैम्पस में बस खड़ी हुई थी। जिसमें सामान भी लद चुका था। डायनिंग हाल में आकर नाश्ता किया और चाय ली।

नाश्ता करके हमने देखा कि कुछ यात्री रिसेप्शन-काऊंटर पर कुछ खरीददारी कर रहे थे, हम भी वहाँ पहुँच गए और कुमाऊँ के दर्शनीय-स्थलों के कुछ पोस्टर्स खरीद लिए। भोले के जयकारे लगाए और आते समय की तरह ही अपनी-अपनी बस में बैठ गए। लगभग 8 बजे ‘‘ओम नमः शिवाय” के उद्घोष के साथ हमारी बस गेस्ट हाऊस से रवाना हुई।

बस काली नदी के किनारे चलती हुई मिरथी की ओर जा रही थी। हम मिरथी जाते समय एक दोराहे पर पहुँच गए। जहाँ से मिरथी जाने वाली सड़क पर ITBP की लाल झंडा लगी जीप खड़ी थी। वह जीप हमें लेने आयी हुई थी। हमारे ड्राइवर को अपने पीछे आने का इशारा करके आगे-आगे चलने लगी।

हम मिरथी के ITBP बेस कैंप में प्रवेश कर गए। गेट से ही रिसीव करने के लिए रास्ते के दोनों ओर सिपाही पंक्तिबद्ध होकर खड़े थे तो कमांडर इन चीफ़ स्वयं स्वागत के लिए उपस्थित थे।

फिर पास ही बने एक भवन में हमें ले जाया गया। उक्त भवन के गेट के पास ही कुछ फोटोग्राफ्स लगे हुए हैं। जिसे यात्रीगण बड़े ही चाव से देख रहे थे। जिसमें हमारी कैलाश मानसरोवर यात्रा में जाते समय लिए गये स्वागत-सत्कार के फोटोग्राफस के अलावा सामूहिक फोटोग्राफ्स भी है। यात्रियों के लिये यहां चाय - नाश्ता का इंतजाम आईटीबीपी के द्वारा किया गया है। सभी यात्री यहां नाश्ता का आनन्द लिए, नाश्ता उपरांत हमें हाल में बिठाया गया। जहां सभी यात्रियों को कैलाश यात्रा एवं यात्रा के दौरान आईटीबीपी जवानों के द्वारा दी गई सहायता या असहयोग के बारे में फीड बैक देने हेतु फार्म दिया गया। जिसे भरकर वही जमा किए। तत्पश्चात उसी कक्ष में प्रत्येक यात्री को समूह फोटो वितरित किया गया।

वह से हम पिथौरागढ़ के लिए रवाना हुए। रास्ते में एक जगह लैंड स्लाइड की वजह से एक पेड सड़क पर गिरा हुआ था। काफी टाइम हमारा वही पर ख़राब हो गया। 4 बजे तक हम पिथौरागढ़ पहुंच गये। बड़ा ही मनोरम स्थान है और कुमाऊ मंडल विकास निगम का गेस्ट हाउस एक छोटी सी पहाड़ी पर है। वहाँ पहुँचते ही हमें बुरांश का शरबत मिला। पिथौरागढ़ में रूम काफी अच्छा था। कुछ देर आराम करने के बाद हम वहाँ बाजार घूमने गए। हमारे गेस्ट हाउस के साथ ही पहाड़ी पर उल्का देवी का मंदिर था। रात को खाना खा कर अपने अपने रूम में सोने चले गए। 
मैं और बंसल जी 

धारचूला होटल में कोचर जी के साथ 





मिर्थी में 




मस्ती करते हुए 



पिथौरागढ़ 


प्रवेश द्वार उल्का माता मंदिर का 




गेस्ट हाउस का रिसेप्शन